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एकमा में उठ रही एक नई राजनीतिक ध्वनि – विकास कुमार सिंह और विरासत की पुनर्परिभाषा

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✍🏻 विशेष आलेख | 2025 बिहार विधानसभा चुनाव

बिहार की राजनीति में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो समय के साथ सिर्फ बदलते नहीं, बल्कि अपने साथ एक विचार, एक प्रतिबद्धता और एक पूरी पीढ़ी की राजनीतिक आकांक्षा लेकर आते हैं। विकास कुमार सिंह, एकमा विधानसभा क्षेत्र से जन सुराज के घोषित उम्मीदवार, उन्हीं नामों में से एक बनते जा रहे हैं।
उनका यह उभार कोई आकस्मिक राजनीतिक प्रयोग नहीं, बल्कि विरासत, संघर्ष और सामाजिक जागरूकता से उपजा एक सुविचारित अभियान है।

देव कुमार सिंह: चार दशकों की राजनीतिक प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण

विकास कुमार सिंह के पिता, देव कुमार सिंह, बिहार की राजनीति में एक प्रतिबद्ध, सादा जीवन जीने वाले, जमीन से जुड़े और वैचारिक राजनीति करने वाले नेता के रूप में विख्यात रहे हैं। करीब 40 वर्षों तक जन आंदोलनों, संगठनात्मक कार्य और विचार आधारित राजनीति में सक्रिय रहे देव कुमार सिंह ने राजनीति को कभी “सत्ता का साधन” नहीं, बल्कि “जनसेवा का माध्यम” माना।

एकमा और आसपास के क्षेत्रों में उन्होंने न सिर्फ सामाजिक चेतना फैलाने का कार्य किया, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि अधिकार और स्थानीय नेतृत्व को सशक्त करने में भी अग्रणी भूमिका निभाई। उनकी राजनीति विचार से चलती थी, किसी दल या चेहरे से नहीं। यही कारण है कि वो भले चुनाव में सीमित रहे हों, लेकिन जनमानस में “देव बाबू” आज भी भरोसे का नाम हैं।

पिता की विरासत, बेटे का विज़न – विकास कुमार सिंह का उभार

विकास कुमार सिंह ने पिछले एक दशक में यह साबित किया है कि राजनीति सिर्फ भाषणों से नहीं, संगठन, सेवा और सतत उपस्थिति से बनती है।
उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए किसी तात्कालिक लहर या प्रचार तंत्र का सहारा नहीं लिया, बल्कि गांव-गांव की पदयात्रा, युवाओं से संवाद, किसानों की समस्याओं को सुनना और समाधान का मॉडल खड़ा करना—यही उनकी राजनीतिक यात्रा की रीढ़ रही है।

वे कहते हैं, “राजनीति अगर ज़मीन से जुड़ी न हो, तो वह सिर्फ मंच की बातें बनकर रह जाती है।”
इसी सोच के साथ उन्होंने जन सुराज आंदोलन से जुड़कर प्रशांत किशोर के साथ कदम मिलाया।

प्रशांत किशोर के साथ ‘प्रोग्रेसिव पॉलिटिक्स’ की मिसाल

विकास कुमार सिंह, एकमा क्षेत्र में प्रशांत किशोर के सबसे विश्वसनीय और प्रभावशाली सहयोगियों में से एक बनकर उभरे हैं।
जन सुराज की पदयात्रा के दौरान, उन्होंने न केवल एकमा में कई बड़ी सभाओं का नेतृत्व और आयोजन किया, बल्कि पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को भी गांव-गांव तक मजबूत किया।

एकमा में जब प्रशांत किशोर पहुंचे तो विकास कुमार सिंह द्वारा उन्हें ‘लड्डू से तौलना’ महज एक प्रतीकात्मक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि “हमारी राजनीति में अब भावनाओं, सम्मान और जनता की भागीदारी का युग आ गया है।” यह कार्यक्रम इतना चर्चित हुआ कि देशभर के मीडिया ने इसे कवर किया और विकास सिंह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गए।

2025: चुनाव नहीं, विकल्प की तलाश

2025 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक हो सकता है, खासकर उस क्षेत्र के लिए जहां लोग विकल्पहीनता और जातीय समीकरणों के बीच वर्षों से उलझे हैं। एकमा में यह चुनाव महज़ सीट जीतने की होड़ नहीं, बल्कि राजनीतिक संस्कृति के पुनर्निर्माण की लड़ाई होगी।

जन सुराज के उम्मीदवार के तौर पर विकास कुमार सिंह, स्थिर नेतृत्व, युवा सोच, और विकास की वैकल्पिक राजनीति के उस प्रतिनिधि के रूप में सामने आए हैं जिसकी राजनीति टकराव नहीं, संवाद और समाधान की राह पर चलती है।राजनीति का भविष्य विरासत और विज़न के मेल से बनता है।एकमा के मतदाताओं के सामने इस बार एक ऐसा चेहरा है जो न तो राजनीतिक तजुर्बे से अनभिज्ञ है, न ही सत्ता की हवस से ग्रस्त। विकास कुमार सिंह एक ऐसा नाम हैं, जो अपने पिता देव कुमार सिंह की जनवादी परंपरा को आगे ले जाने के साथ-साथ, प्रशांत किशोर जैसे आधुनिक रणनीतिकारों के साथ बदलाव की राजनीति को जमीनी स्तर पर स्थापित कर रहे हैं।

2025 में अगर बिहार नई राजनीति की ओर रुख करता है, तो इसमें एकमा के विकास कुमार सिंह का नाम प्रमुख सूत्रधारों में शामिल होगा — इसमें कोई संदेह नहीं।